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(मोहिनी एकादशी का महत्व)

 मोहिनी एकादिशी को सभी एकादशीयों में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है। इस एकादशी का व्रत रखने से न केवल मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण होता है । बल्कि उसे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इसलिए प्रत्यके व्यक्ति को इस मोहिनी एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। पुराणों के अनुसार मोहिनी एकादशी के बारें में बताया गया है कि जब रावण ने सीता माता का हरण कर लिया था । उस समय प्रभु श्री राम सीता माता के वियोग के दुख से तड़प रहे थे। जिसके बाद अपने दु:खों से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम नें मोहिनी एकादशी व्रत किया था इतना ही नहीं, पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिए पूरे विधि विधान से मोहिनी एकादशी का व्रत को किया था। जिसके बाद उन्हें अपने सभी दुखों से छुटकारा मिल गया था।


 मोहिनी एकादशी  (व्रत कथा)
                               
          सभी दुखों से तारने वाली मोहिनी एकादशी की व्रत कथा की इस प्रकार है। एक समय में भद्रावती नामक नगर में धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे। यह नगर बहुत ही सुंदर हुआ करता था। वहां के राजा बहुत ही प्रतापी और पुण्यात्मा थे। जितना उस राज्य के राजा धार्मिक थे। उतनी ही उनकी प्रजा धार्मिक थी और बढ़ चढ़कर धार्मिक कार्यों में भी भाग लेती थी।इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था। धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ थे। भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी। इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि। उसका यह नाम उसके धृष्टकर्मों के कारण ही पड़ा। बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे। लेकिन धृष्टबुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो। तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया। भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया। जो धृष्टबुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा। ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्वजन्म के पुण्यकर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था। महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा।

          उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते। ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करने से ही तुम्हें मुक्ति मिल सकती है।
 धृष्टबुद्धि ने महार्षि की बात मान ली और मोहिनी एकादशी का विधिवत उपवास किया। जिसके बाद उसे अपने सभी पापों से मुक्ति मिल गई और अंत में मोक्ष की भी प्राप्ति हुई।

   जय जय नारायण नारायण हरि हरि

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