प्रणाम।
इसे सर्वप्रथम महाराजा हरिश्चन्द्र ने सिद्ध किया था। गुरु वशिष्ठ ने यह गुरु मंत्र राजा हरिश्चन्द्र को दिया था।
निसंतान हरिश्चन्द्र ने इस मंत्र के जप से पुत्र की प्राप्ति की थी।
अनपतयोअस्मि देवेशः पुत्र देहि सुख प्रदम ।
ऋणत्रय पहारार्थमुद्धमोअयमयाकृत ।।
इसका नित्य 108 बार जप करने से संतान अवश्य प्राप्त होती है।
आप इस मंत्र से अभिमंत्रित
यंत्र हमारे संस्थान से प्राप्त कर सकते है। जिसे बैडरूम में रखने व नित्य दर्शन करने से भी संतान प्राप्त होती हैं।
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