विष्णु पुराण में सृष्टि रचना का एक रोचक प्रसंग लक्ष्मी जी के जन्म के बारे में,
" भृगु ने ख्याति से धाता और विधाता दो देवताओं को जन्म दिया और एक कन्या लक्ष्मी को जन्म दिया ,पराशर की इस बात पर मैत्रेय जी कहते है कि सुना तो ये है कि अमृत मंथन के समय लक्ष्मी क्षीर सागर से उत्पन्न हुई थी?
इस पर पराशर ने उत्तर दिया -" जिस तरह श्री विष्णु सर्वव्यापी है,लक्ष्मी भी नित्य है।विष्णु अर्थ तो लक्ष्मी वाणी,विष्णु नियम तो लक्ष्मी नीति,विष्णु सृष्टा तो लक्ष्मी सृष्टि, विष्णु काम लक्ष्मी इच्छा, विष्णु यज्ञ लक्ष्मी दाक्षिणा, विष्णु चन्द्रमा लक्ष्मी अक्षय कांति,विष्णु वायु लक्ष्मी गति,विष्णु सागर लक्ष्मी उसकी लहर, विष्णु इंद्र लक्ष्मी इंद्राणी,विष्णु मुहूर्त लक्ष्मी कला,विष्णु दीपक लक्ष्मी ज्योति, विष्णु वर लक्ष्मी वधु।विष्णु बोध लक्ष्मी बुद्धि,विष्णु शंकर लक्ष्मी गौरी,विष्णु वृक्ष रूप लक्ष्मी लता रूप, विष्णु ध्वजा लक्ष्मी पताका,लक्ष्मी जी देवसेना है विष्णु देवसेनापति स्वामी कार्तिकेय है,आदि आदि, संक्षेप में देव,तिर्यक और मनुष्य आदि में पुरूषवाची श्री हरि और स्त्रीवाची श्री लक्ष्मी जी ,इनसे परे और कोई नही इसलिये विष्णु का कभी संग ना छोड़ने वाली लक्ष्मी तो नित्य है,और जिस तरह श्री विष्णु सर्वव्यापक है,लक्ष्मी जी भी। पुराण कथाऐं अधिकतर बड़े ही गूढ़ रहस्य लिए और प्रतिकात्मक है।और इसीलिये जब इन्हें पढ़ते सुनते है तो ही पता चलता है कि हम धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से सबसे समृद्ध है।
कोटिशः नमन हमारे पुरखो,ऋषियों, संतो,आचार्यो को।
।। सुप्रभात ।।
आपका वार शुभ हो।
Comments