1.संक्रांति, ग्रहण, षष्टी,अमावस्या और व्रत के दिन यथा सम्भव स्नान ठंडे पानी से ही करे,।नित्य ही करे ,यदि आप को माफिक आता है तो ये और भी उत्तम।(ठंडे इलाको वाले मौसम अनुरूप ही रहे)
2.दान ,जप और देवकर्म का अधिकारी स्नान पश्चात ही होता है।
3 दान सदैव वस्त्र पहनें होने पर ही करे। और दाहिने हाथ से करे।
4 प्रातःकाल के जप करने पर हाथ नाभि क्षेत्र के पास,दोपहर में हृदय क्षेत्र,सायंकाल मुख के समीप रखें।
5 तालाब में जप का एक गुना, गौशाला में सौ गुना,बगीचे या वन में हज़ार गुना,पवित्र तीर्थ में दस हज़ार गुना,नदी में एक लाख गुना,मंदिर में करोड़ गुना और ज्योतिर्लिंग स्थान में अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।
मतांतर से घर मे एक गुना, नदी में दो,गौशाला में दस,सिद्ध क्षेत्रों में लाख,देव स्थानों में करोड़ और प्राचीन विष्णु मंदिरों में अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।
मतांतर से ये नियम कुछ भिन्न भी हो सकते है,परन्तु मुझे ये उचित और व्यवहारिक लगते है।
।।शुभ प्रभात।।
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