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Showing posts from 2017

माता महाकाली सबर मंत्र

माता महाकाली सबर मंत्र (गोरखबाला कृपा) सतनाम आदेश गुरु जी को ॐ गुरु जी गोरखबाला सिमरु तेरा नाम गोरखबाला करो कृपा गोरखबाला करो स्वीकार मेरी पुकार तेरी भगति गुरु की शक्ति से चलाऊ महाकाली कलकत्ता वासनी ९ घाट विराट रूप धारणी महामाई कैलाश पर्वत से शिव आदेश से चली हाथ मैं खपड़ रक्त प्याली गले मैं मुंड माला पेहेन कर महामाई आई तू ही १० महाविद्या प्रथम स्थानी तेरा रूप निराला महामाई गोरख यती मछिन्दर का चेला हाँक मारे तुजे पुकारे मैं गोरख का चेला रक्षा करे मेरी मेरा नाथ तुम को पाऊ तुमको भाऊ ले के नाम गोरख का भैरव जननी महाकाली आओ मेरे पास महामाई न आवे तो गोरख का वचन तुझको सातवे गोरख बाणी तुजे खावे !!!! सतनाम आदेश गुरु गुरु गोरखनाथ जी अलख निरंजन !!!!!!

श्री काली जगन्मंगल कवचम्

(श्री काली जगन्मंगल कवचम्) ।।श्री दक्षिणाकाली प्रसन्नोस्तु।। . श्री काली जगन्मंगल कवचम् श्री भैरव्युवाच काली पूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधाः प्रभो । इदानीं श्रोतु मिच्छामि कवचं पूर्व सूचितम् ॥ त्वमेव शरणं नाथ त्राहि माम् दुःख संकटात् । सर्व दुःख प्रशमनं सर्व पाप प्रणाशनम् ॥ सर्व सिद्धि प्रदं पुण्यं कवचं परमाद्भुतम् । अतो वै श्रोतुमिच्छामि वद मे करुणानिधे ॥ भैरवउवाच रहस्यं श्रृणु वक्ष्यामि भैरवि प्राण वल्लभे । श्री जगन्मङ्गलं नाम कवचं मंत्र विग्रहम् ॥ पाठयित्वा धारयित्वा च त्रौलोक्यं मोहयेत्क्षणात् । नारायणोऽपि यद्धृत्वा नारी भूत्वा महेश्वरम् ॥ योगिनं क्षोभमनयत् यद्धृत्वा च रघूत्तमः। वर तृप्तो जघानैव रावणादि निशाचरान् ॥ यस्य प्रसादादीशोऽहं ्रैलोक्य विजयी प्रभुः । धनाधिपः कुबेरोऽपि सुरेशोऽभूच्छचीपतिः । एवं हि सकला देवाः सर्वसिद्धिश्वराः प्रिये ॥ विनियोग:- ॐ श्री जगन्मङ्गलस्यास्य कवचस्य ऋषिः शिवः । छ्न्दोऽनुष्टुप् देवता च कालिका दक्षिणेरिता ॥ जगतां मोहने दुष्ट विजये भुक्तिमुक्तिषु । योषिदाकर्षणे चैव विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ऋष्यादि-न्यास:- श्री शिव ऋषये नमःशि...

मा कालिका का अचूक मंत्र

 माता कालिका का यह अचूक मंत्र है। इससे माता जल्द से सुन लेती हैं, लेकिन आपको इसके लिए सावधान रहने की जरूरत है। आजमाने के लिए मंत्र का इस्तेमाल न करें। यदि आप काली के भक्त हैं तो ही करें।                                                                  (शाबर मंत्र  ) ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली, चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई,अब बोलो काली की दुहाई। इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।

।।शास्त्रोक्त पूजा नियम ।।

1.संक्रांति, ग्रहण, षष्टी,अमावस्या और व्रत के दिन यथा सम्भव स्नान ठंडे पानी से ही करे,।नित्य ही करे ,यदि आप को माफिक आता है तो ये और भी उत्तम।(ठंडे इलाको वाले मौसम अनुरूप ही रहे) 2.दान ,जप और देवकर्म का अधिकारी स्नान पश्चात ही होता है। 3 दान सदैव वस्त्र पहनें होने पर ही करे। और दाहिने हाथ से करे। 4 प्रातःकाल के जप करने पर हाथ नाभि क्षेत्र के पास,दोपहर में हृदय क्षेत्र,सायंकाल मुख के समीप रखें। 5 तालाब में जप का एक गुना, गौशाला में सौ गुना,बगीचे या वन में हज़ार गुना,पवित्र तीर्थ में दस हज़ार गुना,नदी में एक लाख गुना,मंदिर में करोड़ गुना और ज्योतिर्लिंग स्थान में अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।  मतांतर से घर मे एक गुना, नदी में दो,गौशाला में दस,सिद्ध क्षेत्रों में लाख,देव स्थानों में करोड़ और प्राचीन विष्णु मंदिरों में अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।    मतांतर से ये नियम कुछ भिन्न भी हो सकते है,परन्तु मुझे ये उचित और व्यवहारिक लगते है।       ।।शुभ प्रभात।।

विशेष कृपा एवं महान विपरीत परिसथितयों में ही प्रयोग करें

विशेष कृपा एवं महान विपरीत परिसथितयों में ही प्रयोग करें जीवन में आ रही किसी भी प्रकार की समस्यायो के निदान के लिए प्रतिदिन 11 वार सस्वर पाठ करे ( दशमहाविद्यास्तोत्रम्: ) ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि । नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥ शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥ जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् । करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥ हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् । गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥ हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥ मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् । प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥ उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् । नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥ श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥ विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् । आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥ श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां...

संतान प्राप्ति का वरुण मंत्र......

  प्रणाम। इसे सर्वप्रथम महाराजा हरिश्चन्द्र ने सिद्ध किया था। गुरु वशिष्ठ ने यह गुरु मंत्र राजा हरिश्चन्द्र को दिया था। निसंतान हरिश्चन्द्र ने इस मंत्र के जप से पुत्र की प्राप्ति की थी। अनपतयोअस्मि देवेशः पुत्र देहि सुख प्रदम । ऋणत्रय पहारार्थमुद्धमोअयमयाकृत ।। इसका नित्य 108 बार जप करने से संतान अवश्य प्राप्त होती है। आप इस मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र हमारे संस्थान से प्राप्त कर सकते है। जिसे बैडरूम में रखने व नित्य दर्शन करने से भी संतान प्राप्त होती हैं।

श्री लक्ष्मी -नारायण

विष्णु पुराण में सृष्टि रचना का एक रोचक प्रसंग  लक्ष्मी  जी के जन्म के बारे में,  " भृगु ने ख्याति से धाता और विधाता दो देवताओं को जन्म दिया और एक कन्या लक्ष्मी को जन्म दिया ,पराशर की इस बात पर मैत्रेय जी कहते है कि सुना तो ये है कि अमृत मंथन के समय लक्ष्मी क्षीर सागर से उत्पन्न हुई थी? इस पर पराशर ने उत्तर दिया -" जिस तरह श्री विष्णु सर्वव्यापी है,लक्ष्मी भी नित्य है।विष्णु अर्थ तो लक्ष्मी वाणी,विष्णु नियम तो लक्ष्मी नीति,विष्णु सृष्टा तो लक्ष्मी सृष्टि, विष्णु काम लक्ष्मी इच्छा, विष्णु यज्ञ लक्ष्मी दाक्षिणा, विष्णु चन्द्रमा लक्ष्मी अक्षय कांति,विष्णु वायु लक्ष्मी गति,विष्णु सागर लक्ष्मी उसकी लहर, विष्णु इंद्र लक्ष्मी इंद्राणी,विष्णु मुहूर्त लक्ष्मी कला,विष्णु दीपक लक्ष्मी ज्योति, विष्णु वर लक्ष्मी वधु।विष्णु बोध लक्ष्मी बुद्धि,विष्णु शंकर लक्ष्मी गौरी,विष्णु वृक्ष रूप लक्ष्मी लता रूप, विष्णु ध्वजा लक्ष्मी पताका,लक्ष्मी जी देवसेना है विष्णु देवसेनापति स्वामी कार्तिकेय है,आदि आदि, संक्षेप में देव,तिर्यक और मनुष्य आदि में पुरूषवाची श्री हरि और स्त्रीवाची श्री लक्ष्...

भादों में करे श्री गणपति जी को प्रसन्न....

 जिस तरह श्रावणमाह में शिव की आराधना का फल अमोघ है उसी प्रकार भादौंमाह भगवान गणेश की आराधना के लिए सर्वोपरि है ! शास्त्रों के अनुसार भादौं माह में गणेश की आराधना प्राणियों का संकल्पित मनोरथ पूर्ण करती है ! इसवर्ष भादौं माह में अपने घर में गणेश की मूर्ति बिठाना, उनकी पूजा आराधना करना विशेष फलदायी रहेगा क्योंकि वर्तमान संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों का अधिकार चन्द्रमा के पास है जो मन, माता, मित्र, मकान, मानसिक सुख-तनाव आदि के स्वामी हैं चन्द्र एवं गणेश सर्वदा साथ-साथ ही रहते हैं इसलिए इसवर्ष विद्यार्थियों अथवा अन्य प्रतियोगिताओं में बैठने वाले युवकों के लिए 'गणेश' पूजा का फल अक्षुण रहेगा ! शास्त्र कहते हैं,'गणानां जीवजातानां य ईशः स गणेशः' अर्थात जो समस्त गणों तथा जीव-जाति के स्वामी हैं वही गणेश हैं ! इनका जन्म वर्तमान श्रीश्वेतवाराहकल्प के सातवें वैवस्वत मनवंतर में भादौं माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि सोमवार को स्वाति नक्षत्र की सिंह लग्न एवं अभिजित मुहूर्त में हुआ ! जन्म के समय सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे तथा पाप ग्रह अपने- अपने कारक भाव में ...

विष्णु स्तुति, एक श्लोकी रामायण

विष्णु स्तुति  स्तुतिशान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्     वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥ श्रीराम वंदना लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ श्रीरामाष्टक हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा। गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥   हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते। बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥ एक श्लोकी रामायण आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥ बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

श्री कृष्ण स्तुति

                                                                                  श्री कृष्ण स्तुति कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम। नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥ सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि। गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥ मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

गणपति स्तोत्र

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:। द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥ विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:। द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥ विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्। विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय। लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥ नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय। गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥ शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं। प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

दीप दर्शन

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥ दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

सूर्यनमस्कार

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने। दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम् सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥ ॐ मित्राय नम: ॐ रवये नम: ॐ सूर्याय नम: ॐ भानवे नम: ॐ खगाय नम: ॐ पूष्णे नम: ॐ हिरण्यगर्भाय नम: ॐ मरीचये नम: ॐ आदित्याय नम: ॐ सवित्रे नम: ॐ अर्काय नम: ॐ भास्कराय नम: ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम: आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

लक्ष्मीद्वादशनाम स्तोत्र

                                     लक्ष्मीद्वादशनाम स्तोत्र श्रीदेवी प्रथमम् नाम द्वितीयममृतोद्भवा । त्रितीयम् कमला प्रोक्ता चतुर्थम् सुरसुंदरी ॥ पंचमम् देवगर्भा च षष्ठं च मधुसूदनी । सप्तमम् तु वरारोहा अष्टमम् हरिवल्लभा ॥ नवमम् शार्ञ्गणी प्रोक्ता दशमम् देवदेवता । एकादशम् तु लक्ष्मी : स्यात द्वादशम् भुवनेश्वरी ॥ एतद् द्वादश नामानि त्रिसंध्यम् य: पठेन्नर: । आयुर्ारोग्यमैश्वर्यमतिपुण्य फलप्रदम् ॥ द्विमासम सरवकार्याणि षणमासाद्राज्यमेव च । संवत्सरम् तु पूजाया: श्रीलक्ष्म्या: पुज्य एव च ॥ लक्ष्मीम क्षीरसमुद्रराजतनयाम् श्रीरंगधामेश्वर ीम् । दासिभूतसमस्तदेववनिताम् लोकैकदीपांकुराम् ॥ श्रीमन्मंदकटाक्षलब्धविभवब्रह्मेंद्रगंगाधराम् । ताम् त्रैलोक्यकुटुम्बिनीम सरसिजाम् वंदे मुकुंदप्रियाम ॥ ॥इति लक्ष्मीद्वादशनााम स्तोत्रम् ॥

॥ श्रीलक्ष्मीसूक्त ॥

                                                                                                                                                                                      ॥ श्रीलक्ष्मीसूक्त ॥              श्री गणेशाय नमः । ॐ पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि । विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥ पद्मानने पद्मऊरु पद्माश्री पद्मसम्भवे । तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥ अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने । धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्...

॥ महालक्ष्मीस्तुती ॥

                                                                  ॥ महालक्ष्मीस्तुती ॥ राग: करहरप्रिया, ताल: आदि आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि । यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ १॥ सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र पौत्र प्रदायिनि । पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ २॥ विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि । विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ ३॥ धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि । धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ ४॥ धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते । धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ ५॥ मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि । प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ ६॥ गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व देव स्वरूपिणि । अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ॥ ७॥ धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स...

श्रीलक्ष्म्यष्टोत्तरशत सहस्रनामावली

ॐ प्रकृत्यै नमः । ॐ विकृत्यै नमः । ॐ विद्यायै नमः । ॐ सर्वभूतहितप्रदायै नमः । ॐ श्रद्धायै नमः । ॐ विभूत्यै नमः । ॐ सुरभ्यै नमः । ॐ परमात्मिकायै नमः । ॐ वाचे नमः । ॐ पद्मालयायै नमः । ॐ पद्मायै नमः । ॐ शुचये नम । ॐ स्वाहायै नमः । ॐ स्वधायै नमः । ॐ सुधायै नमः । ॐ धन्यायै नमः । ॐ हिरण्मय्यै नमः । ॐ लक्ष्म्यै नमः । ॐ नित्यपुष्टायै नमः । ॐ विभावर्यै नमः । ॐ अदित्यै नमः । ॐ दित्ये नमः । ॐ दीपायै नमः । ॐ वसुधायै नमः । ॐ वसुधारिण्यै नमः । ॐ कमलायै नमः । ॐ कान्तायै नमः । ॐ कामाक्ष्यै नमः । ॐ क्रोधसंभवायै नमः । ॐ अनुग्रहप्रदायै नमः । ॐ बुद्धये नमः । ॐ अनघायै नमः । ॐ हरिवल्लभायै नमः । ॐ अशोकायै नमः । ॐ अमृतायै नमः । ॐ दीप्तायै नमः । ॐ लोकशोकविनाशिन्यै नमः । ॐ धर्मनिलयायै नमः । ॐ करुणायै नमः । ॐ लोकमात्रे नमः । ॐ पद्मप्रियायै नमः । ॐ पद्महस्तायै नमः । ॐ पद्माक्ष्यै नमः । ॐ पद्मसुन्दर्यै नमः । ॐ पद्मोद्भवायै नमः । ॐ पद्ममुख्यै नमः । ॐ पद्मनाभप्रियायै नमः । ॐ रमायै नमः । ॐ पद्ममालाधरायै नमः । ॐ देव्यै नमः । ॐ पद्मिन्यै नमः । ॐ पद्मगन्धिन्यै नमः । ॐ पुण्यगन्धायै नमः । ॐ सुप्रसन्नायै...

मंदिर एवं मंदिर प्रांगण में दर्शन कैसे करें ?

मंदिर  अर्थात् जहां भगवानका साक्षात् वास है । दर्शनार्थी देवालयमें इस श्रद्धासे जाते हैं कि, वहां उनकी प्रार्थना भगवानके चरणोंमें अर्पित होती है और उन्हें मन:शांति अनुभव होती है । मंदिर में दर्शनकी योग्य पद्धति मंदिर प्रवेशेसे पहले आवश्यक कृतियां  शरीरपर धारण की हुई चर्मकी वस्तुएं उतार दें ।  मंदिर के प्रांगणमें जूते-चप्पल पहनकर न जाएं; उन्हें देवालयक्षेत्रके बाहर ही उतारें ।      मंदिर  के प्रांगण अथवा देवालयके बाहर जूते-चप्पल उतारने ही पडें, तो देवताकी दाहिनी ओर उतारें ।  मंदिर में व्यवस्था हो, तो पैर धो लें । हाथमें जल लेकर `अपवित्र: पवित्रो वा', ऐसा तीन बार बोलते हुए अपने संपूर्ण शरीरपर तीन बार जल छिडकें । किसी मंदिर में प्रवेश करनेसे पूर्व पुरुषोंद्वारा अंगरखा (शर्ट) उतारकर रखनेकी पद्धति हो, तो उस पद्धतिका पालन करें । (यद्यपि यह व्यावहारिक रूपसे उचित न लगे, तब भी  मंदिर की सात्त्विकता बनाए रखने हेतु कुछ स्थानोंपर ऐसी पद्धति है ।) मंदिर में दर्शन हेतु जाते समय पुरुष भक्तजनोंको टोपी तथा स्त्रीभक्तोंको पल्लूसे अपने सिरको ढकना चाहिए...

शास्र अध्ययन महा कल्याण.....

विभिन्न प्रकार के वेद शास्रो का अध्ययन करने से विभिन्न प्रकार की ईचछाए पूरण होती हैं और जीवन के विभिन्न भागों में अपना असर दिखाते हैं ०१ श्री शिव महापुराण ................. ........अलौकिक सुख ,मोक्ष पाने हेतु. ०२ श्री विष्णु महापुराण ............... भौतिक सुख,समृधि पाने हेतु. ०३ श्री देवीभगवत महा पुराण............... पारिवारिक अंतर्कलह निवारण हेतु. ०४ श्री गणेश महापुराण ...................... संतान सुख ,संतान विद्या प्राप्ति हेतु. ०५ श्री हरी वंशमहापुराण .....................संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति हेतु. ०६ श्री लिंग महापुराण .........................वैभव पाने हेतु. ०७ श्री स्कंध महापुराण........................प्रेत दोष शांति हेतु,मोक्ष पाने हेतु. ०८ श्रीमद भगवत महापुराण ................प्रकति, सम्पन्नता हेतु. ०९ श्री अग्निमहापुराण .......................समस्त बीजो की प्रमाणिकता हेतु. १० श्री नर्मदा महापुराण.........................हरीभरी प्रकति उठान हेतु . ११ श्री वामन महापुराण..........................ब्रहमांड की रक्ष हेतु. १२ श्री ब्रम्हा वैवत्य महापुराण........

गणेश जी के इस मंत्र सिद्धि की प्राप्ति होती है।

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।। श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥